Popular Posts

वाजीकरण चिकित्सा के भेद


वाजीकरण चिकित्सा के भेद
मुख्य रूप से वाजीकरण चिकित्सा के तीन भेदों (प्रकारों) में विभाजित किया जा सकता
(1) कामोद्दीपन   (2) शुक्रवर्धन व शुक्र शोधन (3) वीर्य स्तम्भन
(1) शारीरिक दृष्टि से स्वस्थ व पुष्ट शरीर वाले पुरुष जो वीर्य से परिपूर्ण भी हों किन्तु किन्हीं
कारणों से कामवासना (कामोत्तेजना) जागृत न होती हो । इन्द्री में ढीलापन व सुस्ती होने से सफल
सम्भोग करने में असमर्थ हो, उनके लिए कामोद्दीन अर्थात् कामवासना उत्पन्न करने वाली औषधियों
की योजना की जाती है। अकरकरा, जायफल, जावित्री, कपूर, केसर, कस्तूरी, केचुए, कौंच के बीज,
अण्डों का सत्व, कुचला अथवा स्ट्रिकनीन, ताम्बूल (पान), योहिम्बन हाईड्रोक्लोर,


मल्लयोगेन लौह
भस्म, संख्या के फूल, मल्ल चन्द्रोदय तथा मकरध्वज इत्यादि औषधियाँ सषुप्त कामउत्तेजना को
जागृत करने में सहायक हैं । बीरबहुटी, रेगमाही, केचुए, मालकांगनी, कोमल, अण्डों की जर्दी का
तेल, सांडे का तेल, इत्यादि औषधियों को वाह्य प्रयोगार्थ (तिल्लों) के रूप में मालिश करने से शिश्न
की कमज़ोर व मृत नसें पुनः सजीव हो जाती है। लिंग में चेतना व शक्ति का संचार होकर ध्वजभंग
आदि रोग नष्ट होते हैं।
(2) वीर्यल्पता के कारण उत्पन्न हुई नपुंसकता में वीर्यवर्धक औषधियों की योजना की जानी
है। वीर्योत्पादक ग्रंथियां सुचारू रूप से काम न कर रही हों, किन्हीं कारणों से शरीर में शक्र की कमी
हो गई हो, अत्याधिक वीर्य का दुप्रयोग करने या अधिक स्त्री भोग के कारण शरीर का सत्व (वीर्य)
सूख गया हो तो शुक्रजनक, वीर्य पैदा करने वाली, धातुपौष्टिक औषधियों से लाभ होता है । असगंध,
शतावरी, मूसली, ग खरू, कौंच बीज, उटंगन बीज, सालम मिश्री, शकाकुल मिश्री, वंग भस्म, लौह

No comments:

Popular Posts